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उर्जा चक्रः अलौकिक शक्तियों के केंद्र

लाइफ में  सुख-दुख, सफलता असफलता का कारण उर्जा चक्र ही हैं। ये सक्रिय हों तो व्यक्ति को सेहत, सम्मान और समृद्धि दे ही देते हैं।


कुंडली चक्रः योग-भोग-मोक्ष का केंद्र

सिद्धि, प्रसिद्धि, समृद्धि का केंद्र कुंडलिनी चक्र भौतिक जीवन में सभी सुख स्थापित करने में सक्षम है. इसके जागृत होते ही व्यक्ति प्रसिद्ध होने लगता है. धन समृद्धि का आकर्षण होता है. सिद्धियों की राह खुल जाती है.


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यह मूलाधार चक्र के नीचे दोनों पैरों के बीच मल-मूत्र द्वार के बीच की जगह पर स्थित होता है। यहां जीवन योग-भोग-मोक्ष देने वाली सभी तरह की उर्जायें होती हैं।
इस चक्र के बिगड़ने पर भौतिक जीवन में धनाभाव, गुमनामी, नाकामी उत्पन्न होती है. कमर, पैर, पीठ के दर्द की पीड़ा इसी कारण होती है.

मूलाधार चक्रः सम्पन्नता का केंद्र
धन, रोजगार, कांफीडेंस का केंद्र का केंद्र मूलाधार चक्र भौतिक जीवन का आधार है.  यह ठीक रहे तो व्यक्ति कभी बेरोजगार नही रहता. कामकाज में कभी नुकसान नही होता. धन की कमी नही होती. कर्ज की पीड़ा नही सताती.  कांफीडेस कभी कम नही होता.

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यह पीठ पर रीढ़ की हड़़्डी के निचले हिस्से पर स्थित है। इसकी चार में से तीन पंखुड़ियां लाल और एक पीली होती है। किंतु पूरा चक्र लाल दिखता है। यहां पृथ्वी तत्व है। गरुण पुराण के मुताबिक इसमें भगवान गणेश की शक्तियां स्थापित हैं। यह मंडल ग्रह की उर्जाओं से मजबूत और शनि ग्रह की स्मोकी उर्जाओं से कजोर होता है। इसकी उर्जायें सूर्य ग्रह के प्रभाव को बहुत सपोट करती हैं।
इस चक्र के बिगड़ने पर बेरोजगारी, घाटा-नुकसान, कर्ज, निराशा, आत्महत्या की प्रवृति, आलस्य, शक्ति की कमी,  खून व हड्डियों के रोग, मांस पेशियों के रोग,  स्किन डिसीज, बाल झड़ने सहित कई तरह की गम्भीर परेशानियां पैदा होती हैं.

स्वाधिष्ठान चक्रः आनंद का केंद्र
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सेक्स, सृजन, आनंद का केंद्र स्वाधिष्ठान चक्र भौतिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. यह ठीक रहे तो व्यक्ति आनन्दमय जीवन जीने लायक होता है. इसके ठीक होने पर जीवन का विकास सुचारू रूप से होता है. बनाई गई योजनायें फलीभूत होती हैं. इसकी 70 प्रतिशत उर्जायें मस्तिष्क के विकास के काम आती हैं। जिन बच्चों का यह चक्र खराब होता है वे पैदायशी रूप से मानसिक कमजोर (मेंटली रिटायर्ड) होते हैं।
जननागों से थोड़ा ऊपर स्थापित इस चक्र की 6 पंखुड़ियां होती हैं। इसका रंग नारंगी है। यहां जल तत्व है। गरुण पुराण के मुताबिक इसमें भगवान ब्रह्मा की शक्तियां स्थापित हैं। यह शुक्र ग्रह की उर्जाओं से सशक्त और बुध ग्रह की उर्जाओं से कमजोर होता है। इसकी उर्जायें चंद्र ग्रह के प्रभाव  को बहुत सपोट करती हैं। यह निम्न स्रजन का केंद्र है।
इस चक्र के बिगड़ने पर कमर, पैर, पीठ की तकलीफ, बांझपन, पौरुष शक्ति में कमी, सिस्ट, रसौली, कैंसर सहित गर्भासय, यूट्रेस, मूत्रासय के रोग, स्तन कैंसर सहित कई तरह की परेशानियां पैदा होती हैं.

नाभि चक्रः उर्जाओं का स्टोर रूम

स्वास्थ, कामनापूर्ति, सुख का केंद्र नाभि चक्र व्यक्ति की उर्जाओं अर्थात् शक्तियों का स्टोर रूम जैसा होता है.  व्यक्ति आकस्मिक निर्णय यहीं से लेता है. इसके ठीक होने पर स्वास्थ उत्तम रहता है. यहां की बची हुई उर्जायें ऊपर जाकर अवचेतन शक्ति को मजबूत करती हैं। उन्हीं से लोगों की कामनायें पूरी होती हैं।  इसी कारण इच्छाओं की पूर्ति के लिये व्रत रखे जाने का विधान प्रचलित है. शास्त्रों के मुताबिक यहां भगवान कुबेर की शक्तियां स्थापित हैं। यह स्वाधिष्ठान चक्र का पड़ोसी है। उसकी उर्जाओं को लेकर अपने अंदर स्टोर करता है। जो शरीर चलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। यह राहु ग्रह की उर्जाओं से दूषित हो जाता है।
इस चक्र के बिगड़ने पर पाचन तंत्र खराब होता है. पेट सहित शरीर के अनगिनत रोग उत्पन्न होते हैं. व्यक्ति सही समय पर सही निर्णय नही ले पाता. इच्छायें, कामनायें पूरी होते होते रह जाती हैं।

उर्जा प्रक्षेपण (BP) चक्रः भूत भय का केंद्र

BP, भूत भय, घबराहट का केंद्र कटि चक्र या उर्जा प्रक्षेपण चक्र बहुत महत्वपूर्ण है.  यह नाभि से पीछे पीठ पर स्थित है. ये चक्र मूलाधार में बन रही उर्जा को ऊपर के चक्रों की तरफ प्रक्षेपित करता है. अपरोक्ष रूप से यह एनर्जी को शरीर के ऊपरी हिस्सों में पहुंचाने का काम करता है.
इस चक्र के बिगड़ने पर BP बिगड़ता है.  जब इसमें एनर्जी की कमी होती है तो BP लो होता है. एेसी स्थिति में व्यक्ति घबराहट, भूत बाधा भय, आशंकाओं, उदासी का शिकार होता है. जब इसमें एनर्जी अधिक होती है तो BP हाई होता है.  एेसे में चिड़चिड़ापन, अकारण गुस्सा,  हृदय रोग, कि़डनी के रोग सहित कई तरह की परेशानियां उत्पन्न होती हैं. डिप्रेशन का बड़ा कारण भी यही चक्र है. इसमें लो एनर्जी के कारण बहुत लोग भूत भय से ग्रसित रहते हैं।

मणिपुर चक्रः राज योग का केंद्र
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तेज, साहस, सफलता का केंद्र मणिपुर चक्र अत्यधिक संवेदनशील होता है. यह ठीक हो तो हर काम में सफलता मिलती हैं. व्यक्ति तेजस्वी और प्रसिद्ध बनता है. अपने साथ दूसरों के लिये भी फायदेमंद साबित होता है. एेसा व्यक्ति बेरोक अनगिनत लोगों का पालन पोषण कर लेता है.

यह राज योग का केंद्र है। यहां भगवान विष्णु की उर्जाओं की स्थापना है। नाभि से लगभग 6 इंच ऊपर स्थित मणिपुर चक्र की 10 पंखुड़ियों का रंग पीला होता है। इसमें अग्नि तत्व होता है। यह सूर्य ग्रह की उर्जाओं से पोषित होता है। शुक्र ग्रह की उर्जायें इसे कमजोर करती हैं।
इस चक्र के बिगड़ने पर सब कुछ गड़बड़ाता चला जाता है. सफलतायें रुक जाती हैं. अपमान होता है. कड़ुवाहट उत्पन्न होती है. अपराधिक और अनैतिक आदतें पनपती हैं. बात बर्दास्त नही होती. गुस्सा आता रहता है. व्यक्ति के भीतर से इंशानियत खत्म होने लगती है. स्वार्थ, दुर्भावना, हिंसा, भ्रष्टाचार पनपता है. माता पिता जीवन साथी व अपनों का अपमान होता है.

प्रारब्ध चक्रः पास्ट कर्मा का केंद्र

पुरानी बातें, शक, उदासी का केंद्र प्रारब्ध चक्र लीवर में स्थित होता है. यह मणिपुर और अनाहत चक्र का पड़ोसी है। अपनी बिगड़ी उर्जाओं को मणिपुर पर उड़ेल कर उसे भी तुरंत बिगाड़ देता है। साथ ही अनाहत चक्र में अकारण दुखों की उर्जा व्याप्त कर देता है। यहां पुरानी उर्जायें होती हैं बातों और प्रारब्ध की उर्जायें होती हैं। यह ठीक हो तो व्यक्ति पुरानी बातें भूलकर निरंतर प्रगति करता हुआ आगे बढ़ता है. यह पास्ट कर्मा का केंद्र है।
इस चक्र के बिगड़ने पर लीवर के खराब होने और उसकी विभिन्न बीमारियों का खतरा रहता है. व्यक्ति पुरानी बातों में उलझकर शंकाओं और उदासी का शिकार होता है. सिरोसिस सहित लीवर की कई परेशानियां इसके कारण पैदा होती हैं.

अनाहत चक्रः खुशियों का केंद्र


खुशी, उत्साह, करुणा, दया और प्रेम का केंद्र अनाहत चक्र मन में, जीवन में उत्साह और उमंग उत्पन्न करता है. यह अच्छा हो तो मन खुश रहता है.  अपनापन मिलता है, प्रेम-प्यार में सफलता मिलती है. व्यक्तित्व में सम्मोहन होता है. दिल स्वस्थ रहता है. शास्त्र छाती के मध्य स्थित 12 पंखुड़िों वाले इस चक्र में भगवान शिव की शक्तियों का वास बताते हैं। यहां वायु तत्व है। यह चंद्रमा और शुक्र की उर्जाओं से मजबूत होता है। सूर्य और मंगल ग्रह की उर्जायें इसमें असुविधा पैदा करती हैं। कुछ विद्वान इसे हरा तो कुछ गुलाबी बताते हैं। अतींद्रीय रूप से देखने पर यहां इन दोनो के अवाला गोल्डन रंग की उर्जायें अधिक मात्रा में दिखाी देती हैं। यह उच्च भावनाओं का केंद्र है।
इस चक्र के बिगड़ने पर दिल और स्वांस की बीमारियां पैदा होती हैं.  अकारण ही दुख पैदा होते रहते हैं. रिश्ते बिगड़ते हैं,  धोखा मिलता है. नफरत पैदा होती है. मन बेचैन रहता है. सुख में भी दुख पैदा हो जाता है.

विशुद्धि चक्रः वाणी सिद्धि का केंद्र
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कला, अट्रेक्शन, उच्च सृजन का केंद्र विशुद्धि चक्र उर्जाओं का शुद्धीकरण करता है. यह  कलाकार की सफलतायें सुनिश्चित करता है. यह ठीक हो तो शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र मजबूत रहता है. इंफेक्शन नही पनपता. व्यक्तित्व में आकर्षण होता है.  मधुरता होती है. यह उच्च स्रजन का केंद्र है। गले के बीच स्थपित इस चक्र में  आकाश तत्व होता है। शास्त्रों में यहां आत्मा की शक्तियों की स्थापना बताी गई है। यह व्यक्तित्व का निर्माण करता है। वाणी सिद्धि देता है। कला और क्रिएशन की क्षमता देता है। इस चक्र में सम्मोहन की क्षमता होती है। बुध ग्रह की उर्जायें इसे शक्ति प्रदान करती हैं। ब्रहस्पति ग्रह की उर्जायें इसे कमजोर करती हैं।    
इस चक्र के बिगड़ने पर व्यक्ति बार बार बीमारी का शिकार होते हैं. कलाकार अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन नही कर पाते और लगातार स्ट्रगल का शिकार होते हैं. पर्सनालिटी डल रहती है. थायराइड सहित गले और छाती से सम्बंधित कई बीमारियां परेशान करती हैं. पूजा पाठ में ध्यान केंद्रित नही होता.

आज्ञा चक्रः ज्ञान का केंद्र
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डिसीजन, कमांड, प्लानिंग का केंद्र आज्ञा चक्र सभी चक्रों पर नियंत्रण करता है. यह ठीक हो तो सफल योजनायें बनती हैं. दूसरों पर कमांड करने की क्षमता उत्पन्न होती है. ध्यान का केंद्रीकरण होता है. व्यक्ति की सलाह दूसरों के लिये भी फायदेमंद होती है. निर्णय अच्छे होते हैं.
दोनों भौंहो के बीच स्थित इस चक्र को ज्ञान चक्र भी कहा जाता है। यह ज्ञान का केंद्र है। शास्त्र यहां गुरू की शक्तियों का वास बताते हैं। यहां माता लक्ष्मी की शक्तियों की भी उपस्थिति प्रचुर मात्रा में मिलती है। इसका रंग नीला और तत्व ज्ञान है। इसे शनि ग्रह की उर्जायें अधिक प्रभावित करती हैं। 
इस चक्र के बिगड़ने पर अपने ही फैसले नुकसान दायक साबित होते है. बार बार काम बिगड़ते हैं. लोग कहना नही मानते. उतार चढ़ाव बना रहता है. कन्फ्यूजन रहता है. फिजूल खर्ची होती है. कर्ज बढ़ता है. किसी भी काम में ध्यान नही टिकता. दिखावे की प्रवृति परेशान करती है. विवाद और कोर्ट कचेहरी की परेशानियां उत्पन्न होती हैं।

थर्ड आई चक्रः दिव्य दृष्टि का केंद्र
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मेमोरी, आई साइट, दिव्यता का केंद्र थर्ड आई चक्र व्यक्ति में ज्ञात अज्ञात जानने की क्षमता देता है. यह ठीक हो तो व्यक्ति की याददास्त अच्छी रहती है. आंखों की रोशनी दुरुस्त रहती है. इंट्यूशन पावर आश्चर्य जनक होती है. सम्मोहन शक्ति बढ़ती है.
माथे के बीच में स्थित इस चक्र में माता दुर्गा की शक्तियों का वास बताया जाता है। यह परा शक्तियों और दिव्य दृष्टि का केंद्र है।  इसे शनि और ब्रहस्पति ग्रहों की उर्जायें प्रभावित करती हैं। प्रायः यहां नीली और बैंगनी रंग की उर्जाओं की अधिकता होती है। इसमें टेलीपैथी की क्षमता है।
इस चक्र के बिगड़ने पर आंखें कमजोर होती हैं. याददास्त कमजोर होती है. पढ़ाई में मन नही लगता. पूजा पाठ फलित नही होते. मन उचटा सा रहता है. दिमागी उच्चाटन होता है।

सहस्रार चक्रः सौभाग्य का केंद्र
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भाग्य, देव कृपा और नर्वस सिस्टम का केंद्र सौभाग्य चक्र सहस्रार चक्र, क्राउन चक्र के नाम से भी जाना जाता है. ये ठीक हो तो भाग्य से मिलने वाली सभी उपलब्धियां खिंची चली आती हैं.  देवी देवताओं की कृपा हर समय बनी रहती है.  कम मेहनत में भी ज्यादा परिणाम मिल जाते हैं.
सिर के ऊपर स्थित यह चक्र देव शक्तियों का केंद्र है। यहां परमात्मा से जोड़ने वाली सिल्वर काड स्थापित है। जो जन्म से मृत्यु तक बनी रहती है। इसी के जरिये जन्म के समय आत्मा आती है और मृत्यु उपरांत वापस जाती है।
यह चक्र भाग्य  का निर्माण करता है। यहां सृष्टि निर्माता उर्जा के अलावा त्रिदेवों की भी उर्जाओं का वास है।चक्र में सभी रंगों की उर्जायें दिखती हैं। किंतु सुनहरी और बैंगनी उर्जा की अधिकता है। इसके मध्य भाग में हृदय चक्र (अनाहत) की तरह सुनहरे रंग का चक्र दिखता है। विद्वान उसे परमात्मा का हृदय कहते हैं।
इस चक्र के बिगड़ने पर दुर्भाग्य का सामना करना पड़ता है. बने काम भी बिगड़ते रहते हैं. देव कृपा दूर रहती है. साधना सिद्धी सफल नही होती.  व्यक्ति होश सम्भालते ही अभाव व असफलताओं की मार झेलता है. नर्वस सिस्टम बिगड़ने का खतरा रहता है.

मंत्र संजीवनी उपचार के प्रयोग से ये सभी चक्र ठीक हो जाते हैं।